Floor Test:हॉल ही में झारखंड में चंपाई सोरेन की सरकार ने राज्यपाल द्वारा प्रेरित Floor Test (फ्लोर टेस्ट) का समर्थन करते हुये 81 विधानसभा सदस्यों में से 47 के साथ विश्वास मत हासिल किया| इस लेख में फ्लोर टेस्ट क्या है,उससे सम्बंधित संवैधानिक प्रावधान तथा राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति के बारें में जानेंगे|

1-Floor Test क्या है |
2-फ्लोर टेस्ट से सम्बंधित संवैधानिक प्रावधान
3-राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति
4-राज्यपाल द्वारा फ्लोर टेस्ट मांग सुप्रीम कोर्ट की टिपण्णी
फ्लोर टेस्ट क्या है-
फ्लोर टेस्ट मुख्य रूप से यह जानने के लिये किया जाता है,कि कार्यपालिका को विधायिका का विश्वास प्राप्त है या नहीं |
यह एक संवैधानिक प्रणाली है,जिसके तहत राज्यपाल द्वारा नियुक्त मुख्यमंत्री को राज्य की विधानसभा के पटल पर बहुमत सिद्ध करने के लिए कहा जा सकता हैं|
फ्लोर टेस्ट विधानसभा में बहुमत का परीक्षण करने का एक साधन है | अगर राज्यपाल को मुख्यमंत्री के विरुद्ध कोई संदेह है,तो राज्यपाल उसे सदन में बहुमत सिद्ध करने के लिए कह सकता हैं |
गठबंधन सरकार के समय भी मुख्यमंत्री को विश्वास मत पेश करने तथा बहुमत हासिल करने के लिए कहा जा सकता हैं |
स्पष्ट बहुमत के अभाव में,राज्यपाल यह जानने के लिए एक विशेष सत्र बुला सकता है कि सरकार बनाने के लिए किसके पास बहुमत है |
फ्लोर टेस्ट में आंकड़ों की गणना केवल उन विधायकों के आधार पर की जाती है जो मतदान के समय उपस्थित होते हैं |
फ्लोर टेस्ट से सम्बंधित संवैधानिक प्रावधान-
अनुच्छेद 174-यह राज्यपाल को राज्य विधानसभा का आह्वान करने,भंग करने तथा स्थगित करने का अधिकार प्रदान करता है|
अनुच्छेद 174(2)(b)-यह राज्यपाल को कैबिनेट की सहायता तथा सलाह पर विधानसभा को भंग करने की शक्ति प्रदान करता है,लेकिन यदि मुख्यमंत्री के बहुमत पर संदेह है तो विवेक का इस्तेमाल किया जा सकता है|
अनुच्छेद 175(2)-यह राज्यपाल को सदन का आह्वान करने तथा सरकार की संख्यात्मक सामर्थ्य निर्धारित करने के लिए शक्ति परीक्षण के आयोजन का अधिकार प्रदान करता है|हालांकि राज्यपाल इस शक्ति का प्रयोग केवल संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार कर सकता है |इस अनुच्छेद के अनुसार राज्यपाल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता तथा परामर्श पर कार्य करता है |
राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति-
अनुच्छेद 161(1)-यह राज्यपाल की किसी भी विवेकाधीन शक्ति को केवल उन मामलों तक सीमित करता है,जहाँ संविधान स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करता है कि राज्यपाल को अपने विवेक पर कार्य करना चाहिये तथा स्वतंत्र मानसिकता का प्रयोग करना चाहिये |
अनुच्छेद 174-राज्यपाल अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग तब कर सकता है,जब मुख्यमंत्री ने सदन का समर्थन खो दिया हो तथा उसके सामर्थ्य पर बहस चल रही हो |
कई मौकों पर,न्यायालयों ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब सत्तारुढ दल का बहुमत प्रश्न में हो तो शीघ्र-से-शीघ्र फ्लोर टेस्ट आयोजित किया जाना चाहिये |
मुख्यमंत्री के पक्ष में बहुमत के संदेह की स्थिति में राज्यपाल तथा विपक्ष फ्लोर टेस्ट की मांग कर सकते हैं|
राज्यपाल द्वारा फ्लोर टेस्ट मांग सुप्रीम कोर्ट की टिपण्णी-
एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ मामला 1994-इस ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि मुख्यमंत्री का फ्लोर टेस्ट से इंकार करना सरकार द्वारा अपनी विधयिका का विश्वास मत खोना माना जायेगा |
नबाम रेबिया और बमांग फेलिक्स बनाम डिप्टी स्पीकर 2016-इस मामलें में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सदन को बुलाने का अधिकार केवल राज्यपाल में निहित नहीं है,इसका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सहायता तथा सलाह से किया जाना चाहिये |
न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि राज्यपाल केवल राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त नामांकित व्यक्ति हैं,न कि एक निर्वाचित अधिकारी | इस तरह से नामांकित व्यक्ति के पास राज्य विधानमंडल के सदन या प्रतिनिधियों पर वीटो शक्ति नहीं हो सकती हैं |
यदि राज्यपाल को उसके स्रोतों के आधार पर यह स्पष्ट हो जायें कि सरकार को सदन का विश्वास प्राप्त है या नहीं तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल को शक्ति परीक्षण का आदेश देने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता हैं |
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