
जन्म :12 जनवरी 1863 कोलकाता
बचपन का नाम :नरेन्द्रनाथ दत्त
पिता :विश्वनाथ दत्त
माता :भुवनेश्वरी देवी
गुरु :रामकृष्ण परमहंस
साहित्यिक कार्य :राज योग (पुस्तक)
प्रसिद्ध वाक्य :"उठो,जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो"
दर्शन :आधुनिक वेदांत तथा राज योग.jpg)
विवेकानंद जी का समाज सुधार आन्दोलन :
स्वामी जी ने 25 वर्ष के उम्र में गेरुआ वस्त्र धारण कर लिये |उसके बाद उन्होंने पूरे भारतवर्ष की पैदल यात्रा की |स्वामी जी ने अपने भारतभ्रमण पर भारत में व्याप्त गरीबी तथा भुखमरी को देखा |स्वामी जी प्रथम ऐसे नेतृत्वकर्ता थे जिन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त गरीबी व भुखमरी की आलोचना की |जिसके बाद सामाजिक सुधार विवेकानंद के विचार का एक प्रमुख तत्त्व बन गया तथा इससे जुड़ गए |उन्होंने बाल विवाह,निरक्षरता को समाप्त करने के लिए तत्पर रहे | साथ ही महिलाओं एवम निम्न जातियों के लिये हमेशा दृढ़ संकल्पित रहे |
शिकागो विश्व धर्म महासभा :उनकी प्रसिद्धि का आधार-
1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्वधर्म महासभा स्वामी जी के उदेश्यों को पूर्ण करने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण चरण था | इसी महासभा में स्वामी जी द्वारा दिए गए भाषण ने पश्चिमी विश्व का प्रथम सांस्कृतिक दूत बना दिया|
स्वामी जी ने हिन्दू दर्शन, जीवन शैली की व्याख्या सरल शब्दों में की | जिससे पश्चिमी विश्व आसानी से समझ सके |
स्वामी जी ने पश्चिमी जगत को एहसास करवाया कि पश्चिमी जगत स्वयं के उद्धार हेतु भारतीय आध्यात्मिकता से बहुत कुछ सीख सकता है |
अपनी गरीबी व पिछड़ेपन के बावजूद भी भारत का विश्व संस्कृति में विशेष योगदान है |
इस तरह स्वामी विवेकानंद जी ने भारत का अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक अलगाव समाप्त करने का प्रयास किया | स्वामी जी भारत के प्रथम सांस्कृतिक दूत बनकर पश्चिमी जगत गए |
स्वामी जी का आध्यात्मिक विचार :
स्वामी जी ने हिन्दू धर्म ग्रंथो, वेदों के सार्वभौमिक तथा मानवतावादी पक्ष पर जोर दिया साथ ही हठधर्मिता के बजाय सेवा में विश्वास पर जोर दिया | स्वामी जी ने हिन्दू आध्यात्मिकता को प्रस्तुत करते हुये हिन्दू विचारो में जोश भरने का प्रयास किया | 1897 में अपने शिष्यों के साथ स्वामी जी ने कोलकाता में गंगा नदी पर बेलूर मठ में रामकृष्ण मठ की स्थापना की |
उन्होंने वेदान्तिक धर्म क्र उच्चतम आदर्शो को 20वी सदी में अपनाया तथा प्रासंगिक बनाया साथ ही पूर्व व पश्चिम पर समान रूप से अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ी |
स्वामी विवेकानंद जी का योगदान :
स्वामी विवेकानंद जी एक संत,देशभक्त ,वक्ता,विचारक तथा मानव प्रेमी थे | वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के भी प्रेरणा स्रोत बने | रवीन्द्रनाथ टेगोर ने स्वामी विवेकानन्द के बारे में कहा था कि "यदि आप भारत को जानना चाहते है तो विवेकानंद को पढियें |"
स्वामी विवेकानंद जी ने भारत के सांस्कृतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया |
हिन्दू धर्म व दर्शन को राष्ट्रीय एवम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलायी |
हिन्दू धर्मो के विभिन्न सम्प्रदाओं के बीच व्याप्त प्रतिस्पर्धा व विरोध को समाप्त कर राष्ट्रीय एकीकरण के सूत्र में बांधा |
भारतीय दर्शन में स्वयं के चिंतन व अनुभव से मौलिक विचारों को जोड़ा |
भारत का सांस्कृतिक एकीकरण किया |
स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन :
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2-एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ |
3-पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है |
4-एक उत्तम चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है |
5-स्वयं को कमज़ोर समझना सबसे बड़ा पाप है |
6-बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है |
7-शक्ति जीवन है , निर्बलता मृत्यु है | प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है |
8-चिंतन करो चिंता नहीं, नए विचारो को जन्म दो|
9-व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है |
10-जब तक तुम अपने आप पर भरोसा नहीं करते तब तक तुम्हे ईश्वर पर भरोसा नहीं हो सकता है |
11-अपने मस्तिष्क को अच्छे विचारों से भर दो | इसके बाद आप जो भी कार्य करेंगे वह महान होगा |
12-कोई भी चीज जो तुम्हे शारीरिक, मानसिक, धार्मिक रूप से कमज़ोर करती है , उसे त्याग दो|
13-जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी |
14-संगति आप को ऊँचा उठा सकती है और यह आप की ऊँचाई को खत्म भी कर सकती है |
15-दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो|