जैसे की आप जानते हैं कि कोई भी व्यक्ति, संस्था, सरकार अपने छोटे, बड़े काम या कोई भी खर्चें या निवेश का एक बजट बना कर ही करता हैं | आप भी बजट के बारे में जानना चाहते हो तो इस लेख द्वारा बजट क्या हैं तथा बजट निर्माण की प्रक्रिया क्या होती हैं इसकी जानकारी मिल जायेगी |
इस लेख में-
1-बजट क्या हैं
2-बजट निर्माण की प्रक्रिया
3-बजट पारित होने की प्रक्रिया
3.1-बजट का प्रस्तुतीकरण
3.2-आम बहस
3.3-विभागीय समितियों द्वारा जाँच
3.4-अनुदान की मांग पर मतदान
3.5-विनियोग विधेयक का पारित होना
3.6-वित्त विधेयक का पारित होना
4-बजट निर्माण प्रक्रिया में प्रयुक्त शब्दावली
5-FAQ

बजट क्या हैं-
आय-व्यय लेखा का अंग्रेजी रूपांतर बजट हैं | इसका शाब्दिक अर्थ चमड़े की वह थैली है जिसमें कागज ले जाये जाते हैं | उस बैग थैली के सम्बन्ध में उन कागजों को ही बजट कहा जाने लगा जिनमें साल के वित्तीय प्रस्ताव रहते हैं |सामान्य अर्थ में बजट सरकारी कागजों को ध्वनित करता हैं |आर्थिक पत्र उसका विशेषार्थ हैं |
आज के प्रचलित अर्थ में बजट का अभिप्राय आय तथा व्यय का ऐसा लेखा हैं जिसमें दोनों यथासंभव संतुलित होते हैं | वे आय तथा व्यय राजकीय अथवा शासन-सम्बन्धी होते हैं, जिनको शासन लेता देता हैं | समाज के निजी आय-व्यय से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता हैं | वैसे निजी संगठन अथवा परिवार भी अपना आय-व्यय लेखा रखते हैं | परन्तु 'बजट' का विशिष्ट अर्थ राजकीय बजट से हैं |
अनेक देशों में राजकीय भाषाओँ में बजट के कुछ और भी अर्थ किये जाते हैं जिनका संक्षिप्त उल्लेख आवश्यक हैं | जो आय-व्यय का अनुमान प्रस्ताव के रूप में विधानमंडल में प्रस्तुत किया जाता हैं, वह भी बजट कहलाता हैं और उसके द्वारा स्वीकृत लेखे को भी बजट ही कहते हैं |भारत में कभी-कभी बजट का अर्थ केवल अनुमानित व्यय-लेखा होता हैं | कहा जाता हैं की यह इस विभाग का बजट हैं | इसके विपरीत, इंग्लैंड में बजट प्रायः अनुमानित कर-आय ही होता हैं | अमेरिका में इसका व्यापक अर्थ प्रस्ताव के स्तर से लेकर कार्यान्वित होने एवम परीक्षित तक किया जाता जाता हैं |

बजट निर्माण की प्रक्रिया-
अनुमानों को तैयार करने की विधि प्रायः सभी देशो में एक ही हैं| यहाँ हम भारतीय व्यवहार का विवेचन करेंगे |
बजट के अनुमानों को तैयार करने का उत्तरदायित्व सरकार के कार्यकारी विभाग पर होता हैं | प्रशासन चलाना उसी का दायित्व होता हैं | अत: वह अच्छी तरह जानता हैं कि उसको कितने धन की आवश्यकता पड़ेगी |
अगले वित्तीय वर्ष के आरम्भ होने के 6 या 8 महीने पूर्व से ही उसकी बजट-रचना का उपक्रम आरम्भ हो जाता हैं |इंग्लैंड की भांति ही भारत का भी वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से आरम्भ होता हैं | इसलिए, बजट की तैयारी का काम सितम्बर से शुरू हो जाता हैं | इसका श्रीगणेश वित्तमंत्री उस सामान्य पत्र द्वारा करता हैं जो सभी मंत्रालयों तथा विभागों के पास जाता हैं और जिसमे अनुरोध रहता हैं कि अपने-अपने अनुमान बनाना आरम्भ कर दिए जाये | यें विभाग अथवा मंत्रालय उस पत्र को अपने विभिन्न कार्यालयों को भेज देते हैं | उनके पास छपे हुये प्रपत्र जाते हैं जिनमें अनुमान तथा अन्य सूचनायें दी जाती हैं | अलग-अलग प्रपत्रों में कर तथा व्यय दिखाए जाते हैं |प्रत्येक अनुमान एक व्ययानुमान की पांच प्रतियाँ तैयार की जाती हैं | यदि 2024-2025 वर्ष के लिए यें अनुमान है, तो निम्नलिखित आंकड़ें होंगे-
1-विगत वर्ष के वास्तविक आंकड़ें, अर्थात् जो धन 2022-2023 में आया और खर्च हुआ |
2-2023-2024 के लिए संशोधित आकंड़े |
3-2024-2025 के लिए भी अनुमानित आकंड़े |
4-2023-2024 के अनुज्ञापित(Sanctioned) आकंड़े|
5-2023-2024 के वास्तविक आकंड़े |
6-विगत वर्ष के इसी समय के वास्तविक आंकड़े |
इस सभी संख्याओं के आधार पर आगामी वर्ष के आंकड़ें बनते हैं | जो विशेष स्थिति सामने हैं, उसके अनुसार घटाव-बढाव होता हैं | विगत वर्ष के आंकड़ों से यह अनुमानित आकंड़े कुछ अधिक रखे जाते हैं, क्योंकि वेतन आदि में वृद्धि होती हैं | परन्तु जब यह घटाव-बढाव काफी अधिक होता हैं तो उसको समझाने के लिए टिप्पणी दी जाती हैं जिसके लिए प्रपत्र में अलग जगह होती हैं | जो नयी आय अंदाजी जाती हैं, उसके विषय में भी टिप्पणी देनी होती हैं |
अनुमानित आंकडे दो भागों में विभाजित किये जाते हैं | एक भाग में चालू करों तथा व्ययों का उल्लेख होता हैं और दूसरे में अनुमानित व्ययों और करों का | इन करों के स्रोत में जहाँ कमी होने वाली हैं, उसका भी उल्लेख होता हैं |
स्थानीय अधिकारी विभागीय प्रधानों के पास अपने अनुमान भेजते हैं | प्रधान उनके योगों का लेखा बनाता है जो सम्पूर्ण विभाग के लिए ही होता हैं | योगों को अंतिम रूप देने के पूर्व वह उसकी समीक्षा कर लेता हैं और यथासंभव उसमे घटाव-बढाव भी करता हैं | प्रत्येक विभाग के अनुमान सम्बंधित मंत्रालयों को भेजें जाते हैं | फिर मंत्रालयों में उनकी समीक्षा होती हैं | वहाँ सरकारी नीति का ध्यान रखा जाता हैं | उसके बाद वें आकड़ें सचिवालयों और फिर वित्त मंत्रालय अथवा वित्त विभाग के पास आते हैं | इस बजट-अनुमान को महालेखा अधिकारी भी देख लेता हैं और थोड़े बहुत सुझाव भी दे डेटा हैं, क्योंकि उसके पास पहले के हिसाबों के पक्के आंकडें होते हैं |
✳वित्त मंत्रालयों द्वारा अनुमानों की समीक्षा-
जब अनुमान सभी विभागों से वित्त मंत्रालय में पहुँच जाते हैं, तब वहाँ उनकी समीक्षा और छानबीन होती हैं | वहाँ पर्याप्त संशोधन होता हैं | तदन्तर वे एकत्रित किये जाते हैं और उनके योगों के आधार पर भारत सरकार के बजट का एक रूप तैयार होता हैं | वित्त मंत्रालयों की पूर्व अनुमति के बिना अनुमानों में व्ययों की वृद्धि नहीं की जा सकती हैं | यदि कोई प्रशासकीय मंत्रालय किसी व्यय को अनिवार्य रूप से बढ़ाना चाहता हैं,परन्तु वित्त मंत्रालय उसको अस्वीकार कर देता है, तो वह विषय मंत्रिमंडल के समक्ष उपस्थित किया जाता है |कैबिनेट को उस पर निर्णय देना पड़ता हैं, परन्तु प्रायः वह वित्त मंत्री के पक्ष में होता है | कैबिनेट को वैधानिक अधिकार है की वह वित्त मंत्री की बात न माने, परन्तु व्यवहार में ऐसा होता नहीं | वित्त मंत्री की बात नहीं टाली जाती |
वित्त मंत्रालय की इतनी महिमा क्यों हैं, उसकी अन्य मंत्रालयों के अनुमानों पर नियंत्रण करने का अधिकार क्यों दिया जाता हैं? इसके मुख्य 2 कारण हैं- पहला कारण यह की वित्त मंत्रालय व्यय करने वाला विभाग नहीं है | वह इस स्थिति में है कि कर देने वाली जनता के हितों की रक्षा कर सकें | दूसरा कारण यह है कि दूसरे सभी विभागों के खर्च के लिए उसी को धन की व्यवस्था करनी पड़ती हैं | अत: यह उचित ही है कि उसको यह कहने का अधिकार हो की अमुक व्यय न किया जाये |
वित्त मंत्रालय प्रस्तुत अनुमानों की छानबीन वित्तीय दृष्टि से करता हैं | दूसरे शब्दों में, उनको यह मालूम है कि उपलब्ध धन कितना है | साथ ही किफ़ायत करते हुये उसको यह देखना पड़ता है कि कहीं धन की कमी न पड़ जाये | वह यह नहीं देखता कि अन्य मंत्रालयों की नीति क्या हैं |उसको केवल यह देखना पड़ता है कि उसकी वित्तीय मांगें पूरी की जा सकती हैं या नहीं |
बजट के ऊपर जो नियंत्रण भारत में वित्त मंत्रालय लगाता हैं वही ब्रिटेन में कोष विभाग (Treasury) लगाता है और अमेरिका में 'बजट ब्यूरो' (Bureau Of Budget) लगाता है |
✳मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकार करना-
वित्त मंत्रालय और प्रधानमंत्री अन्य कैबिनेट सदस्यों के साथ मिलकर बजट की जाँच करते हैं ताकि यह तय किया जा सके कि कौन सी नीतियाँ वित्त और राजस्व से सम्बंधित हैं | इस प्रक्रिया को बजट प्रस्तुत करना कहा जाता है | बजट को पूरे कैबिनेट सदस्यों के साथ मिलकर बनाया जाता है, फिर इसे संसद में पेश किया जाता हैं |
✳संसदीय प्रक्रिया-
उपरोक्त प्रक्रिया होने के बाद बजट पारित होने के लिए संसद में पेश किया जाता हैं |
Read More-बजट क्या है बजट के प्रकार
बजट पारित होने की प्रक्रिया-
संसद में बजट निम्नलिखित 6 स्तरों से गुजरता है-
1-बजट का प्रस्तुतीकरण-
पहले बजट दो रूपों में प्रस्तुत किया जाता था-रेलवे बजट और आम बजट | दोनों के लिए समान प्रक्रिया अपनायी जाती थी| लेकिन 2017 से रेल बजट को आम बजट में ही मिला दिया गया तब से सिर्फ आम बजट ही पेश किया जाता हैं |
आम बजट को 1 फरवरी को पेश किया जाता हैं | आम बजट को प्रस्तुत करते समय वित्तमंत्री सदन में जो भाषण देता है, उसे बजट भाषण कहते है | लोकसभा में भाषण के अंत में वित्तमंत्री बजट प्रस्तुत करता है | राज्यसभा में इस बाद में पेश किया जाता है | राज्यसभा को अनुदान मांगों पर कटौती का कोई अधिकार नहीं होता है |
2-आम बहस-
साधारण बजट को प्रस्तुत करने की तिथि के कुछ दिन बाद तक बजट पर आम बहस चलती रहती है |दोनों सदन इस पर तीन से चार दिन बहस करते है | इस चरण में लोकसभा इसके पूरे या आंशिक भाग पर चर्चा कर सकती हैं इससे सम्बंधित प्रश्नों को उठाया जा सकता है | बहस के अंत में वित्त मंत्री को अधिकार है कि इसका जवाब दे |
3-विभागीयों समितियों द्वारा जाँच-
बजट पर आम बहस पूरी होने के बाद सदन तीन या चार हफ़्तों के लिए स्थगित हो जाता है | इस अन्तराल के दौरान संसद की स्थायी समितियां अनुदान की मांग आदि की विस्तार से पड़ताल करती है और एक रिपोर्ट तैयार करती हैं | इन रिपोर्टों को दोनों सदनों में विचारार्थ रखा जाता हैं |
स्थायी समिति की व्यवस्था 1993 से शुरू की गयी | यह व्यवस्था विभिन्न मंत्रालयों पर संसदीय वित्तीय नियंत्रण के उद्देश्य से प्रारंभ की गयी थी |
4-अनुदान की मांगों पर मतदान-
विभागीय स्थायी समितियों के आलोक में लोकसभा में अनुदान की मांगों के लिए मतदान होता हैं | मांगें मंत्रालयवार प्रस्तुत की जाती है | पूर्ण मतदान के उपरान्त एक मांग, अनुदान बन जाती है |
इस सन्दर्भ में दो बिंदु उल्लेखनीय हैं-एक, अनुदान के लिए मतदान लोकसभा की विशेष शक्ति है, जो कि राज्यसभा के पास नहीं हैं | दूसरा, राज्यसभा को मतदान का अधिकार बजट के मताधिकार वाले हिस्से पर ही होता है तथा इसमें भारत की संचित निधि पर भारित व्यय शामिल नहीं होते हैं |(इस पर केवल चर्चा के जा सकती है|)
सदस्य अनुदान मांगों पर कटौती के लिए प्रस्ताव भी ला सकते हैं | इस प्रकार के प्रस्ताव को कटौती प्रस्ताव कहा जाता हैं | यें 3 प्रकार के होते हैं-नीति कटौती प्रस्ताव, आर्थिक कटौती प्रस्ताव, सांकेतिक कटौती प्रस्ताव |
5-विनियोग विधेयक का पारित होना-
संविधान में व्यवस्था की गयी है कि भारत की संचित निधि से विधि सम्मत विनियोग के सिवाय धन की निकासी नहीं होगी | तदनुसार भारत की निधि से विनियोग के लिए एक विनियोग विधेयक पुर:स्थापित किया जाता हैं, ताकि धन को निम्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाये-
(क) लोकसभा में मत द्वारा दिए गए अनुदान
(ख) भारत की संचित निधि पर भारित व्यय
विनियोग विधेयक की रकम में परिवर्तन करने या अनुदान के लक्ष्य को बदलने अथवा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की रकम में परिवर्तन करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, संसद के किसी सदन में प्रख्यापित नहीं किया जायेगा|
इस मामलें में राष्ट्रपति की सहमति के उपरांत ही कोई अधिनियम बनाया जा सकता हैं | इसके बाद ही निधि से किसी प्रकार के धन की निकासी की जा सकती है |
6-वित्त विधेयक का पारित होना-
वित्त विधेयक भारत सरकार के उस वर्ष के लिए वित्तीय प्रस्तावों को प्रभावी करने के लिए पुर:स्थापित किया जाता हैं | इस पर धन विधेयक की सभी शर्तें लागू होती हैं | वित्त विधेयक में विनियोग विधेयक के विपरीत संशोधन (कर को बढ़ाने या घटाने के लिए) प्रस्तावित किये जा सकते हैं | कर संग्रहण अधिनियम,1931 के अनुसार वित्त विधेयक को 75 दिनों के भीतर प्रभावी हो जाना चाहिये | वित्त अधिनियम बजट के आय पक्ष को विधिक मान्यता प्रदान करता है और बजट को प्रभावी स्वरुप देता है |
बजट निर्माण प्रक्रिया में प्रयुक्त शब्दावली-
1-नीति कटौती प्रस्ताव-
यह मांग की नीति के प्रति असहमति को व्यक्त करता है | इसमें कहा जाता है कि मांग की राशि 1 रुपये कर दी जाये | सदस्य कोई वैकल्पिक नीति भी पेश कर सकते है |
2-आर्थिक कटौती प्रस्ताव-
इसमें इस बात का उल्लेख होता हैं कि प्रस्तावित व्यय से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ सकता है | इसमें कहा जाता है कि मांग की राशि को एक निश्चित सीमा तक कम किया जाये (यह या तो मांग में एकमुश्त कटौती हो सकती है या फिर पूर्ण समाप्ति या मांग की किसी मद में कटौती) |
3-सांकेतिक कटौती प्रस्ताव-
यह भारत सरकार के किसी दायित्व से सम्बंधित होता है |
4-अनुपूरक अनुदान-
इसे संसद द्वारा तब स्वीकृत किया जाता है जब किसी विशेष सेवा हेतु विनियोग अधिनियम द्वारा प्राधिकृत राशि उस वर्ष हेतु चालू वित्तीय वर्ष में अपर्याप्त पाई जाये |
5-अतिरिक्त अनुदान-
यह तब प्रदान की जाती है,जब उस वर्ष हेतु बजट में किसी नयी सेवा के संबंध में व्यय परिकल्पित न किया गया हो और चालू वित्तीय वर्ष के दौरान अतिरिक्त व्यय की आवश्यकता उत्पन्न हो गयी हो |
6-प्रत्यानुदान-
जब किसी सेवा या मद के लिए आकस्मिक रूप से धन की अत्यधिक एवम तुरंत सहायता आवश्यक होती हैं तो इस प्रकार की अनुदान मांग राखी जाती है | यह कहा जा सकता है कि यह लोकसभा द्वारा कार्यपालिका को दिया गया ब्लेंक चेक होता है |
7-भारत की संचित निधि-
यह एक ऐसी निधि है,जिसमें से सभी प्राप्तियां उधार ली जाती है और भुगतान जमा किये जाते हैं | दूसरे शब्दों में, भारत सरकार द्वारा प्राप्त सभी राजस्व, राजकोष विधेयकों या अर्थोपाय अग्रिमों को जारी केंद्र सरकार द्वारा लिए गए सभी ऋण, ऋणों की पुनर्अदायगी में सरकार द्वारा प्राप्त धन राशि, भारत की संचित निधि का भाग होगी |
FAQ-
प्रश्न- बजट की पहली ड्राफ्ट कॉपी कौन देखता है ?
संसद में पेश किए जाने तक बजट एक गुप्त दस्तावेज होता है। जब इसे प्रस्तुत किया जाता है, तब तक इसके बारे में सभी जानकारी गुप्त होती है। हालांकि, आप शायद जानते होंगे कि बजट को सबसे पहले देखने वाला पहला व्यक्ति: वित्त मंत्री होते हैं |
प्रश्न- भारत की पहली महिला वित्त मंत्री कौन है ?
निर्मला सीतारमण
प्रश्न- स्वतंत्र भारत के प्रथम वित्त मंत्री कौन थे ?
शणमुखम चेट्टी
प्रश्न- सबसे लम्बा बजट भाषण देने का रिकॉर्ड किसके पास हैं ?
निर्मला सीतारमण
प्रश्न- कब से बजट 1 फरवरी को पेश किया जा रहा हैं ?
2017 से 1 फरवरी को पेश किया जा रहा हैं |
प्रश्न-रेल बजट अलग से पेश करने की परम्परा किस वर्ष समाप्त हुई ?
2017