Deepfake Technology:क्या होती है डीपफेक टेक्नोलॉजी और समाज के लिये कितनी खतरनाक है ?

Deepfake Technology:वर्तमान समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) बहुत तेजी से बढ़ रहा है |इसके साथ ही डीपफेक, शैलोफेक टेक्नोलॉजी का भी प्रसार हो रहा है |डीपफेक टेक्नोलॉजी रतन टाटा, नारायण मूर्ति, रश्मिका मंदाना समेत कुछ हाई-प्रोफाइल लोगों के नकली वीडियो बनाने को लेकर चर्चा में रही है |ये अनियंत्रित टेक्नोलॉजी के नकारात्मक प्रभाव की झलक मात्र है |इस लेख में डीपफेक क्या है, यह कैसे कार्य करता है, डीपफेक की चुनौतियाँ, डीपफेक के समाज पर प्रभाव आदि पर चर्चा करेंगे |

Deepfake Technology:क्या होती है डीपफेक टेक्नोलॉजी और समाज के लिये कितनी खतरनाक है ?
इस लेख में-

1-डीपफेक क्या है |

2-डीपफेक टेक्नोलॉजी की शुरुआत कैसे हुई |

3-डीपफेक कैसे काम करता है |

4-डीपफेक की पहचान कैसे करे |

5-डीपफेक का पता लगाने के लिये इन AI टूल्स का प्रयोग कर सकते है |

6-डीपफेक से संबंधित चिंताएं तथा चुनौतियाँ |

7-डीपफेक विनियमन से संबंधित वैश्विक दृष्टिकोण |

डीपफेक क्या है-

डीपफेक टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एल्गोरिदम का प्रयोग करके ऑडियो तथा दृश्य सामग्री के जटिल परिचालन को संदर्भित करती है |यह चेहरें के भाव, आवाज़ के बदलाव तथा अन्य विशेषताओं को परिवर्तित करके अत्यधिक विश्वसनीय नकली वीडियो तथा चित्र बनाने में सक्षम बनाता है |डीपफेक वास्तविकता तथा कल्पना के मध्य की सीमा को विकृत कर देता है, जिससे मीडिया, मनोरंजन तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों के लिये महत्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न होती है |

डीपफेक शब्द दो शब्दों Deep Learning तथा Fake से बना है |डीपफेक टेक्नोलॉजी के माध्यम से किसी व्यक्ति के फोटो या वीडियो पर किसी दूसरे व्यक्ति के फेस के साथ फेस स्वैप कर दिया जाया है, जोकि दिखने में असली वीडियो या फोटो लगती है|

डीपफेक टेक्नोलॉजी की शुरुआत कैसे हुई-

डीपफेक शब्द सर्वप्रथम 2017 में एक Raddit यूजर द्वारा बनाया गया था |इसने अश्लील वीडियो पर फेमस हस्तियों के चेहरें से फेस स्वैप किया था, जिसके लिये उसने डीप लर्निंग टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया था |इस घटना के कारण ही डीपफेक टेक्नोलॉजी पर लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ |2018 तक ओपन सोर्स लाइब्रेरी तथा ऑनलाइन शेयर किये गये Tutorial के कारण डीपफेक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में आसानी हो गई |वर्तंमान समय में डीपफेक टेक्नोलॉजी में सुधार हुआ तथा अब उसका पता लगाना जटिल हो गया |

डीपफेक कैसे काम करता है-

डीपफेक टेक्नोलॉजी गहन शिक्षण एल्गोरिदम, विशेषतः जनरेटिव एडवरसेरियल नेटवर्क (GAN) पर निर्भर करती है |

GAN में दो तंत्रिका नेटवर्क होते है |एक जनरेटर तथा एक विभेदक, जो यथार्थवादी नकली सामग्री बनाने के लिये पुनरावृत्त रूप से कार्य करते है |

पुनरावृत्ति प्रशिक्षण के माध्यम से, जनरेटर अपने आउटपुट को वास्तविक मीडिया के समान बनाने के लिये परिष्कृत करता है, जबकि विवित्त्कर (Discriminator) वास्तविक तथा नकली के बीच अंतर करने में अधिक निपुण हो जाता है |

इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप अत्यधिक सॉलिड डीपफेक वीडियो तथा छवियाँ उत्पन्न होती है,जिससे प्रमाणिकता को पहचानना मुश्किल हो जाता है |

डीपफेक की पहचान कैसे करे-

यदि आपको लगे कि कोई वीडियो या फोटो डीपफेक है तो उसमें विसंगतियों की जाँच करना |ऐसी वीडियो में आपको हाथ-पैर की मूवमेंट पर ध्यान देना चाहिए |

मूल स्रोत को खोजने के लिये रिवर्स इमेज सर्च टेक्नोलॉजी का प्रयोग करना चाहिए |

वीडियो या फोटो के गुणवत्ता तथा प्रमाणिकता की जाँच के लिये AI आधारित टूल्स का प्रयोग करना चाहिए |

AI जनरेटेड कंटेंट के लिये कुछ प्लेटफार्म वॉटरमार्क जोड़ते है कि कंटेंट AI से बनाया गया है |इसलिए ऐसे निशान या डिसक्लेमर को ध्यान से देखना चाहिए |साथ ही प्रमाणिकता की जाँच के लिये डिजिटल वाटरमार्किंग का प्रयोग करना चाहिए |

डीपफेक टेक्नोलॉजी के बारे में स्वंय तथा लोगों को शिक्षित करना |

डीपफेक का पता लगाने के लिये इन AI टूल्स का प्रयोग कर सकते है-

आज बहुत सारे AI टूल्स उपलब्ध है जो AI जनरेटेड कंटेंट को आसानी से पकड़ सकते है |AI Or Not तथा Hive Moderation जैसे AI टूल काम में आ सकते है, जिनके द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) द्वारा निर्मित कंटेंट का पता लगा सकते है |Deepware Scanner एक ऐसा टूल जिसकी सहायता से आप किसी फोटो या वीडियो को डीपफेक पता करने के लिये प्रयोग कर सकते है |

डीपफेक के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिये विश्वभर में कई प्रयास चल रहे है |पॉलिसी मेकर, री-सर्च तथा बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां इस डीपफेक टेक्नोलॉजी के बारे में जागरूकता बढ़ाने तथा इसके संभावित दुरूपयोग को कम करने के लिये सक्रिय रूप से कार्य कर रही है |

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डीपफेक से संबंधित चिंताएं तथा चुनौतियाँ-

1-डीपफेक में तेजी से गलत सूचना फैलाने, मीडिया में विश्वास को कम करने तथा सार्वजनिक चर्चा को विकृत करने की क्षमता है |

2-इनका उपयोग फर्जी समाचार रिपोर्ट, मनगढ़ंत राजनीतिक भाषण तथा भ्रामक प्रचार करने के लिये किया जा सकता है, जिससे लोकतान्त्रतिक प्रक्रियाओं के लिये महत्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती है|

3-यह स्पष्ट या समझौतावादी वीडियो पर व्यक्तियों के चेहरों को आरोपित करने की अनुमति देकर महत्वपूर्ण गोपनीयता जोखिम उत्पन्न करता है |

4-इससे उत्पीडन, ब्लैकमेल तथा चरित्र हनन हो सकता है, जिसके लिये दृढ गोपनीयता सुरक्षा उपायों तथा क़ानूनी सुरक्षा की आवश्यकता है |

5-राष्ट्रीय सुरक्षा के दायरे में डीपफेक दुष्प्रचार अभियानों, जासूसी तथा साइबर खतरों का पता लगाने तथा उनका सामना करने में चुनौतियाँ उत्पन्न करता है |

6-द्वेषपूर्ण अभिनेता राजनीतिक नेताओं के विश्वसनीय नकली वीडियो बनाने, रणनीतिक प्रतिक्रियाओं तथा अन्तराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुये सामाजिक अशांति भड़काने के लिये डीपफेक का उपयोग कर सकते हैं |

7-डीपफेक टेक्नोलॉजी के नैतिक निहितार्थ सहमति, प्रमाणिकता तथा सत्यता के प्रश्नों तक विस्तृत है |

8-चूँकि निर्माता तथा उपभोक्ता मीडिया सामग्री में परिचालन करने की नैतिक सीमाओं से जूझ रहे है, इसलिए जिम्मेदार AI के उपयोग को नियंत्रित करने के लिये नैतिक ढांचें तथा दिशा निर्देशों की तात्कालिक आवश्यकता है |

डीपफेक विनियमन से संबंधित वैश्विक दृष्टिकोण-

1-विश्व के प्रथम AI सुरक्षा शिखर सम्मलेन 2023 में भारत, अमेरिका तथा चीन सहित 28 देशों ने AI के संभावित खतरों को दूर करने के लिये वैश्विक कार्यवाही की जरुरत पर सहमति प्रकट की |

2-भारत में डीपफेक टेक्नोलॉजी  को लेकर कोई विशेष कानून नहीं है |बल्कि मानहानि के लिये सजा का प्रावधान है तथा व्यक्तिगत डेटा के दुरूपयोग से बचने हेतु सुरक्षा प्राप्त है |भारत में डीपफेक के खतरें को कम करने के लिये क़ानूनी ढांचे की आवश्यकता है |

3-अमेरिका में डीपफेक के खतरों से बचने के लिये डीपफेक टास्क फ़ोर्स अधिनियम पेश किया गया |

4-चीन ने डीप सिंथेसिस पर कानून पेश किया जोकि 2023 से प्रभावी है |

5-मेटा तथा गूगल ने डीपफेक से निपटने के लिये उपायों की घोषणा की है |

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