विशेषज्ञों के एक समूह ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) को पत्र लिखकर बताया है कि ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट क्षेत्र की आबादी के लिये कैसे हानिकारक होगी |इस लेख में ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट क्या है, इससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं के बारे में चर्चा करेंगे |
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट क्या है-

राष्ट्रीय सुरक्षा तथा हिन्द महासागर क्षेत्र के एकीकरण के लिये इसके महत्व को बार-बार रेखांकित किया गया है |हॉल के वर्षों में हिन्द महासागर में बढ़ते चीनी दावे ने इसकी अनिवार्यता को और अधिक बढ़ा दिया है |
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट के आलोचनात्मक पक्ष-
1-जैव विविधता पर प्रभाव-
*इस प्रोजेक्ट को क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता पर इसके प्रतिकूल प्रभाव तथा लुप्तप्राय प्रजातियों के आवासों को नुकसान के संबंध में चिंताओं का हवाला देते हुये कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है |
*प्रोजेक्ट क्षेत्र तटीय विनियमन क्षेत्र-1A तथा 1B का हिस्सा है तथा गैलाथिया खाड़ी पक्षियों के लिये एक घोंसला स्थल है |
*इसके अलावा, कछुओं के घोंसले वाले स्थानों, डाल्फिन तथा अन्य प्रजातियों को निकर्षण से नुकसान होगा |
2-वृक्ष आवरण तथा मैंग्रोव पर प्रभाव-
*पर्यावरणविदों ने विकास परियोजना के परिणामस्वरूप द्वीप पर वृक्ष आवरण तथा मैंग्रोव के नुकसान को भी चिन्हित किया है |
*वृक्षों के आवरण के नष्ट होने से न केवल द्वीप पर वनस्पतियों तथा जीवों पर असर पड़ेगा, बल्कि इससे समुद्र में अपवाह तथा तलछट के जमाव में भी वृद्धि होगी, जिससे क्षेत्र की प्रवाल भित्तियां प्रभावित होंगी |
3-पर्याप्त मूल्यांकन का अभाव-
आलोचकों ने दावा किया कि व्यापक प्रभावी मूल्यांकन के लिये तीन सीजन के लिये डेटा लेने की आवश्यकता के विपरीत, केवल एक सीजन का डेटा लिया गया है, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट संदर्भ की शर्तों के अनुसार आयोजित नहीं की गई थी |
4-जनजातीय क्षेत्र में अतिक्रमण-
आलोचकों का तर्क है कि विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) को स्थानीय प्रशासन द्वारा उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान की जाती है, लेकिन फिर भी विकास के नाम पर उनके क्षेत्रों में अतिक्रमण के कारण उन्हें अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है |
आगे का रास्ता-
1-जनजातीय अधिकार सुनिश्चित करना-
आदिवासी अधिकारों को प्राथमिकता देना, जैसा कि 2015 की शोम्पेन नीति में उजागर किया गया है |यह नीति जनजातीय अधिकारों को व्यापक विकासात्मक परियोजनाओं से ऊपर रखने पर जोर देती है |
2-पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को अपनाना-
बुनियादी ढांचे के विकास में पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को अपनाना चाहिए, जिसमें भवन निर्माण के लिये ग्रीन रेटिंग इंटीग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट (GRIHA) कोड का सख्त अनुपालन शामिल है |
3-पारदर्शिता को बढ़ावा देना-
नीति आयोग तथा संबंधित योजना संस्थाओं को निर्माण प्रक्रिया, परामर्श समूहों तथा अन्य प्रासंगिक पहलुओं पर व्यापक डेटा सार्वजनिक रूप से जारी करना चाहिए |पारदर्शिता का यह स्तर आलोचकों तथा समर्थकों दोनों के लिये एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है |