19वीं सदी का दौर भारत में धार्मिक-सांस्कृतिक तथा सामाजिक पुनर्जागरण का काल माना जाता है |गौरतलब है कि इस दौर में धर्म और समाज में आमूलचूल परिवर्तन करने के लिये कई बुद्धिजीवी तथा महापुरुष सामने आये जिन्होंने भारतीय समाज में प्रचलित दोषों को दूर करने की पुरजोर कोशिश भी की |ऐसे ही महान समाज सुधारकों में से सावित्रीबाई फुले का नाम बड़े ही सम्मान से लिये जाता है |इन्होने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर भारतीय समाज सुधार आंदोलन को एक नयी दिशा दी |इस लेख में हम बात करेंगे भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की |
प्रारंभिक जीवन-

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के छोटे से गाँव नायगांव में माली समुदाय में हुआ था |इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे तथा माता का नाम लक्ष्मीबाई था |मात्र 9 वर्ष की आयु में ही इनका विवाह 13 वर्षीय ज्योतिराव फुले के साथ 1940 में हो गया, जोकि एक विख्यात विचारक, समाजसेवी, लेखक तथा दार्शनिक थे |विवाह के बाद वह अपने पति के साथ पुणे आ गई |शादी के समय सावित्रीबाई पढ़ी-लिखी नहीं थी |लेकिन उनकी जिज्ञासु प्रवृति से प्रभावित होकर उनके पति ने उन्हें आगे पढ़ाया-लिखाया| सावित्रीबाई ने शिक्षिका बनने का प्रशिक्षण अहमदनगर तथा पुणे में लिया तथा एक योग्य शिक्षिका बनी |
सामाजिक जीवन-
19वीं सदी के दौर में भारतीय महिलाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय थी |जहाँ एक और महिलायें पुरुषवादी वर्चस्व की मार झेल रही थी तो वहीँ दूसरी और समाज की रुढ़िवादी सोच के चलते वह तरह-तरह की यातनाएं और अत्याचार सहने को मजबूर थी |ऐसी कठिन परिस्थितियों में सावित्रीबाई फुले ने समाज सुधारक बनकर महिलाओं को सामाजिक शोषण से मुक्त कराने और उनके समान शिक्षा और अवसरों के लिये अपनी पुरजोर कोशिश की |
वर्ष 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश की सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना सावित्रीबाई फुले ने ही की |उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर लड़कियों के लिये 18 स्कूल खोले |सावित्रीबाई इन स्कूलों में केवल पढ़ाने का ही काम नहीं करती थी बल्कि लड़कियों को स्कूल न छोड़ना पड़े इसके लिये भी लगातार कोशिश किया करती थी |गौरतलब है कि सावित्रीबाई फुले को भारत की प्रथम शिक्षिका भी कहा जाता है |
सावित्रीबाई जब स्कूल में पढ़ाने के लिये अपने घर से निकलती थी तो लोग उन पर कीचड़,कूड़ा तथा गोबर तक फेक देते थे इसलिये वो हमेशा एक साड़ी अपने बैग में लेकर चला करती थी और स्कूल पहुँच कर गन्दी हो चुकी साड़ी को बदल लेती थी |
बिना पुरोहितों के शादी को बढ़ावा देने तथा दहेज प्रथा को समाप्त करने या उसे हतोत्साहित करने के साथ-साथ अंतरजातीय विवाह करवाने के लिये अपने उन्होंने पति के साथ मिलकर सत्यशोधक समाज नाम के एक संगठन की स्थापना 1873 में की थी |विधवा महिलाओं को सहारा देने के लिये उन्होंने पुणे में ही महिला सेवा मंडल की भी स्थापना की थी |समाज में एक नयी जागृति लाने के लिये एक कवयित्री के रूप में सावित्रीबाई ने 2 काव्य पुस्तकें काव्यफुले तथा बावनकाशी सुबोध रत्नाकर लिखी थी |
सामाजिक योगदान-

*1848में पुणे में लड़कियों,दलितों तथा अति-शूद्रों के लिये एक स्कूल शुरू किया| महिलाओं के लिये भारत का पहला स्कूल जिसे भारतीयों द्वारा शुरू किया गया |
*1850 के दशक में पुणे में नेटिव फीमेल स्कूल तथा सोसायटी फॉर प्रमोटिंग दि एजुकेशन ऑफ़ महार्स एंड मांग्स की शुरुआत की |
*वर्ष 1852 में महिलाओं के अधिकारों के बारें में जागरूकता बढ़ाने के लिये 'महिला सेवा मंडल' की शुरुआत की |
*काव्यफुले-1854 तथा बावनकाशी सुबोध रत्नाकर-1892 का प्रकाशन |
*वंचित समुदायों के लिये गो,गेट एजुकेशन कविता की रचना की|
*1890 में ज्योतिराव की मृत्यु के बाद सत्यशोधक समाज को आगे बढ़ाया |
*स्वयं के घर में बालहत्या प्रतिबंधक गृह की शुरुआत की|
सावित्रीबाई फुले के विचार-
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1-जाओ जाकर पढ़ो-लिखो,बनो आत्मनिर्भर,बनो मेहनती काम करो-ज्ञान इकठ्टा करो |ज्ञान के बिना सब खो जाता,ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है इसलिये,खाली न बैठो,जाओ,जाकर शिक्षा लो |
2-स्त्रियाँ केवल घर और खेत पर कार्य करने के लिये नहीं बनी है,वह पुरुषों से अच्छा कार्य कर सकती है |
3-एक सशक्त और शिक्षित स्त्री सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है |इसलिये तुम्हारा भी शिक्षा पर समान अधिकार होना चाहिए |कब तक तुम गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी रहोगी उठो और अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करो |
4-स्वाभिमान से जीने के लिये शिक्षा प्राप्त करो |शिक्षा ही इंसानों का वास्तविक आभूषण है |
5-कोई तुम्हे कमजोर समझे इससे पहले तुम्हे शिक्षा के स्तर को समझना होगा |
6-किसी समाज या देश की प्रगति तब तक संभव नहीं जब तक कि वहां कि महिलायें शिक्षित न हो |
7-तुम बकरी गाय को सहलाते हो,नागपंचमी पर नाग को दूध पिलाते हो,लेकिन दलितों को तुम अछूत मानते हो |
पति का किया अंतिम संस्कार,स्वयं का प्लेग से निधन-
1890 में पति ज्योतिराव का निधन हो गया |उस वक्त सावित्रीबाई ने सभी सामाजिक मानदंडों को नकारते हुये अपने पति का अंतिम संस्कार किया तथा पति की चिता को अग्नि दी |इसके 7 वर्ष पश्चात महाराष्ट्र में प्लेग फ़ैल जाने के बाद उन्होंने पुणे में अपने पुत्र के साथ मिलकर 1897 में एक अस्पताल खोला जिससे प्लेग पीड़ितों का इलाज किया जा सके |हालांकि मरीजों की सेवा करते हुये स्वयं भी प्लेग से पीड़ित हो गई और 10 मार्च 1897 को उन्होंने दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिये अलविदा कर दिया |