वैश्विक भूराजनीति में व्यापार तथा निवेश से लेकर कनेक्टिविटी जलवायु कार्यवाही के साथ-साथ सुरक्षा तक के क्षेत्र में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र एक विशेष महत्व रखता है |इसी का असर है कि भारत से लेकर अमेरिका तथा यूरोप तक हिन्द प्रशांत क्षेत्र की क्षेत्रीय व्यवस्था को खुला तथा नियम आधारित बनाये रखने के लिये अपनी-अपनी भूमिका निभाने में लगे हुये है |ऐसे में इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती दावेदारी को लेकर कई देशों की चिंताएं बढ़ गई है |इसके चलते इस क्षेत्र में कई बहुपक्षीय संगठनों का गठन किया गया है |जैसे-QUAD तथा AUKUS |एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका, ब्रिटेन तथा ऑस्ट्रेलिया अपने AUKUS सुरक्षा समझौतें में नए सदस्यों को लाने पर बातचीत शुरू करने के लिये तैयार है क्योंकि वाशिंगटन चीन के खिलाफ निवारक के रूप में जापान को शामिल करने पर जोर दे रहा है | AUKUS क्या है, क्या AUKUS में नए देशों की एंट्री होगी तथा इसके साथ ही कि क्या इन नए देशों के शामिल होने से चीन को रोकने में ये संगठन सफल हो पायेगा जैसे सवालों पर चर्चा इस लेख में किया गया है |
AUKUS क्या है-

AUKUS का पूरा नाम-ऑस्ट्रेलिया, यूके तथा USA है |इसकी घोषणा सितम्बर 2021 में की गई थी | AUKUS का उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती दावेदारी को कम करना है |यह ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन तथा अमेरिका के बीच एक त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी का समझौता है |जिसके अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु-संचालित पनडुब्बियाँ प्रदान की जायेगी |इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस तथा चीन के साथ सातवाँ देश बन गया जो परमाणु-संचालित पनडुब्बियाँ का प्रयोग करेगा |
AUKUS का उद्देश्य बहु-क्षेत्रीय सहयोग प्रदान करना भी है जो-तीनों देशों के मध्य बैठकें तथा जुड़ाव के लिये मंच प्रदान करेगा |उभरती प्रोद्योगिकियों जैसे AI, Quantum टेक्नोलॉजी का प्रयोग तथा समुद्र के नीचे क्षमताओं को विकसित करना |
AUKUS ऑस्ट्रेलिया को परमाणु हथियार क्षमता प्रदान नहीं करता है, बल्कि यह परमाणु समुद्री प्रणोदन प्राप्त करने का एक साधन है |
यह निम्नलिखित विषयों पर परामर्श तथा समन्वय के एक मंच के रूप में काम करता है-
1-समुद्री सुरक्षा
2-मुक्त तथा खुले व्यापार
3-स्वास्थ्य देखभाल
4-महत्वपूर्ण प्रोद्योगिकियाँ
5-आपूर्ति शृंखला तथा क्षमता निर्माण
AUKUS में नए देशों की एंट्री-
मौजूदा समय में AUKUS में सिर्फ तीन देश शामिल है, लेकिन इन दिनों चर्चा है कि जल्द ही इस समूह में नए सदस्य शामिल होंगे |जिसमें सबसे आगे जापान का नाम चल रहा है |साथ ही दक्षिण कोरिया की भी बात की गई है |हालांकि इन सब उठापठक के मध्य जापान का नाम लगभग तय माना जा रहा है |AUKUS समूह का विस्तार करके जापान तथा दक्षिण कोरिया को शामिल करने के विचार के पीछे कई कारण बतायें जा रहे है |
जापान की भौगोलिक स्थिति AUKUS समूह के लिये जापान को खास बनाती है |विश्व मानचित्र पर जापान बेशक एक छोटा राष्ट्र प्रतीत होता है जो रूस तथा चीन के सामने बौना है, लेकिन आकार से परे यह देश कूटनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है |दरअसल जापान एशिया ,दक्षिण प्रशांत तथा अमेरिका के बीच समुद्री और हवाई चौराहे पर स्थित है |जापान के पश्चिम में केवल रूस, उत्तरी कोरिया, दक्षिण कोरिया तथा चीन देश स्थित है |वहीँ प्रशांत महासागर को पार कर पूर्व दिशा में अमेरिका, कनाडा तथा मैक्सिको जैसे देश मौजूद है |वहीँ दक्षिण कोरिया की भौगोलिक स्थिति पश्चिमों देशों को चीन से लड़ने से एक रास्ता प्रदान करती है |ऐसे में कई विश्लेषकों ने इसकी प्रासंगिकता बनाये रखने तथा चीन के विस्तारवादी नीतियों पर काबू पाने के क्रम में AUKUS की नयी रूपरेखा तैयार की है |उनका मानना है कि अमेरिका से अब अकेले कोरियाई प्रायद्वीप की रक्षा की उम्मीद करना यथार्थवादी नहीं है |वहीँ कई विश्लेषक इन देशों को त्रिपक्षीय संगठन का हिस्सा बनाने पर इसलिए जोर दे रहे है क्योंकि इससे गाइडेड मिसाइल का उत्पादन करके दोनों देश अमेरिकी क्षमता के अंतर को बाटनें में सक्षम हो सकेंगें |अमेरिका के मुताबिक इससे समुद्री नियम आधारित मानदंडों के प्रति चीन के खतरों का मुकाबला करना आसान होगा |साथ ही इस क्षेत्र के सहयोगियों को शामिल किये बगैर इंडो-पैसिफिक में अमेरिका की पकड़ मजबूत नहीं हो सकेगी |
इन्हीं संभावनाओं को देखते हुये ब्रिटेन तथा अमेरिका दोनों ही देश जापान तथा दक्षिण कोरिया को शामिल कर AUKUS के विस्तार के लिये राजी हुयें है |यें और बात है कि ऑस्ट्रेलिया पहले से ही इसके पक्ष में नहीं था |वहीँ हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार ऐसा कहा जा रहा है कि अब ऑस्ट्रेलिया ने भी इसके लिये भी हामी भर दी है |
चीन पर प्रभाव-
गौरतलब है कि नए सदस्यों की मौजूदगी से AUKUS को मजबूती मिलेगी क्योंकि जहाँ एक और चीन की विस्तारवादी तथा आधिपत्य नीतियों के प्रभाव में देश जी रहें है |वहीँ 70 हजार से अधिक अमेरिकी सैनिक तथा अमेरिकी नौसेना का एक सबसे बड़ा बेड़ा भी यहाँ तैनात है |साथ ही जापान और दक्षिण कोरिया खुद दो शीर्ष सैन्य शक्तियां है |इसमें चर्चा थी कि अगर ताइवान के ऊपर चीनी आक्रमण होता है तो अमेरिकी गठबंधन तभी मजबूत हो सकेगा जब उसे जापान की वायु सेना तथा नौसेना का सहयोग मिलेगा |साथ ही इसके लिये दक्षिण कोरिया के आधारभूत संरचना और प्रत्यक्ष सैन्य योगदान के महत्व को भी स्वीकार किया गया है |ऐसा इसलिए क्योंकि एक तो यह अमेरिकी क्षमताओं की समय पर पुनः तैनाती के लिये निकटतम स्रोत है तो वहीँ चीन, उत्तर कोरिया तथा रूस द्वारा एक साथ हुये हमले की स्थिति में जापान के पश्चिमी हिस्सें की रक्षा करने वाला एक बफर देश हो सकता है |रिपोर्ट के अनुसार इन दोनों देशों के कारण ही चीन निकट भविष्य में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में पूर्ण सामुद्रिक नियंत्रण करने की योजना नहीं बना रहा है |मौजूदा हालातों को देख कर यह कहना गलत नहीं होगा कि AUKUS को जापान तथा दक्षिण कोरिया तक विस्तारित किया जायेगा तो चीन की आक्रामक नीतियां बढ़ जायेगी क्योंकि इस समूह से चीन और रूस के गठबंधन को मजबूत चुनौती मिलेगी |यह चुनौती न केवल रक्षा क्षेत्र में मिलेगी बल्कि इससे उसके आर्थिक हित भी प्रभावित होंगे |
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