NISAR Mission:जानें क्या है निसार मिशन, इसके उद्देश्य और लॉन्च डेट

नासा और इसरो का NISAR Mission जून 2025 में लॉन्च हो सकता है |इस निसार मिशन को मूल रूप से पिछले वर्ष की पहली छमाही में लांच किया जाना था, लेकिन इसके 12 मीटर एंटीना में तकनीकी समस्या आने के कारण इसे अमेरिका भेजकर सुधार करवाया गया |इस मिशन को जून 2025 में GSLV-F16 राकेट से श्रीहरिकोटा से लांच किया जायेगा, हालाँकि सटीक तारीख की घोषणा अभी नहीं हुई है |इस लेख में निसार मिशन क्या है, इसके उद्देश्य के विषय में  चर्चा करेंगे |

NISAR Mission:जानें क्या है निसार मिशन, इसके उद्देश्य और लॉन्च डेट

NISAR मिशन क्या है-

इसका पूरा नाम NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) है |इसे वर्ष 2014 में एक समझौते के तहत संयुक्त रूप से नासा तथा इसरो द्वारा विकसित किया गया |यह एक निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) वेधशाला है जो तीन वर्षों तक कार्य करेगी |इसका कुल वजन 2800 किलोग्राम है|

इसमें L-बैंड तथा S-बैंड एसएआर सिंथेटिक एपर्चर रडार लगे है, जो इसे दोहरी आवृत्ति इमेजिंग रडार उपग्रह बनाते है |इसके लिए नासा द्वारा L-बैंड इलेक्ट्रोनिक्स, जीपीएस, सॉलिड-स्टेट रिकॉर्डर तथा पेलोड डेटा सब-सिस्टम प्रदान किया गया है |जबकि इसरो द्वारा S-बैंड इलेक्ट्रोनिक्स, GSLV लांच सिस्टम तथा अंतरिक्ष यान प्रदान किया गया है|

एस-बैंड रडार 8-15 सेंटीमीटर तरंगदैर्घ्य तथा 2-4 गीगाहर्ट्ज़ आर्ट आवृत्ति पर कार्य करता है, जिससे यह निकट तथा दूर के मौसम अवलोकन के लिए उपयुक्त होता है |वही इसमें 39 फीट का स्थिर एंटीना रिफ्लेक्टर है, जो सोने की परत वाली तार-जाली से बना है, जिससे रडार सिग्नल का फोकस किया जाता है |SAR की सहायता से निसार उपग्रह उच्च रिजोल्यूशन छवियाँ प्रदान करेगा |

NISAR मिशन की विशेषताएं-

निसार मिशन की निम्नलिखित विशेषताएं है-

1-वर्ग-पृथ्वी अवलोकन उपग्रह 

2-लांच विवरण-जून 2025 (अनुमानित) 

3-मिशन जीवन-3 वर्ष 

4-चक्र दोहराएँ-12 दिन 

5-कक्षीय विवरण-निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO), ऊंचाई-747 किलोमीटर 

6-वेवलेंथ-एल बैंड: 24 सेंटीमीटर तथा एस बैंड: 9 सेंटीमीटर 

7-रडार उपकरण-एल-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार-नासा द्वारा तथा एस-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार-इसरो द्वारा |

NISAR मिशन के उद्देश्य-

निसार मिशन के निम्नलिखित उद्देश्य है-

1-यह पृथ्वी की सतह में परिवर्तन, प्राकृतिक खतरों तथा पारिस्थितिकी तंत्र की विकृति का अध्ययन करेगा |

2-यह भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी जैसी आपदाओं में तेज प्रतिक्रिया तथा जोखिम आकलन करेगा |

3-कृषि प्रबंधन में यह फसल वृद्धि, मृदा की नमी तथा भूमि उपयोग में बदलाव की जानकारी देगा |

4-इन्फ्रास्ट्रक्चर मॉनिटरिंग में यह तेल रिसाव, शहरीकरण तथा वनों की कटाई की निगरानी करेगा |

5-इसके साथ ही यह मिशन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे-ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र स्तर में वृद्धि तथा कार्बन भंडारण में बदलाव पर नज़र रखेगा |

6-पृथ्वी विज्ञान में क्रांतिकारी बदलाव |

NISAR मिशन के लाभ-

1-निसार आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण संपत्ति साबित होगा |इसकी सहायता से भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी जैसी आपदाओं में त्वरित प्रतिक्रिया तथा आकलन करने में सहायता मिलेगी |

2-इससे कृषि संवर्द्धन में सहायता मिलेगी |

3-बुनियादी ढांचे की निगरानी में सहायता |

4-जलवायु परिवर्तन में उपयोगी |

इसरो द्वारा उपयोग किये जाने वाले प्रक्षेपण यानों के बारें में-

सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV) यह इसरो द्वारा विकसित पहला रॉकेट था, जिसे केवल SLV या सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल कहा जाता था |

ऑगमेंटेड सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (ASLV)-

यह SLV का उन्नत संस्करण था |SLV तथा ASLV दोनों ही एक 150 किलोग्राम तक के छोटे उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने में सक्षम थे |ASLV का प्रयोग 1990 के दशक की शुरुआत तक किया गया, उसके बाद PSLV ने इसको स्थापित कर दिया |

ध्रुवीय सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV)-

PSLV का पहला सफल प्रक्षेपण अक्टूबर 1994 में हुआ था |यह पहला ऐसा लॉन्च वाहन था जो तरल चरण से सुसज्जित था |यह इसरो का सबसे विश्वसनीय राकेट माना जाता है |वर्तमान में इसरो, PSLV, तथा GSLV नामक दो प्रमुख लॉन्च वाहनों का उपयोग करता है, जिनके कई संस्करण है |

जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV)-

यह PSLV की तुलना में अधिक शक्तिशाली है तथा भारी उपग्रहों को अधिक ऊंचाई पर स्थापित करने में सक्षम है |यह पृथ्वी की निचली कक्षा में लगभग 10,000 किलोग्राम तक के पेलोड ले जा सकता है |इसका तीसरा चरण स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज पर आधरित है, जिसे GSLV Mk II कहा जाता है |GSLV Mk III संकरण ने इसरो को भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण में आत्मनिर्भर बनाया |

स्माल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV)-

इसका उद्देश्य छोटे तथा सूक्ष्म उपग्रहों के लिए लागत प्रभावी तथा त्वरित प्रक्षेपण सेवा प्रदान करना है |यह लगभग 500 किलोग्राम तक के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित कर सकता है |वैश्विक स्तर पर छोटे उपग्रहों की बढ़ती मांग को देखते हुए इसका विकास किया गया है |

पुनः प्रयोज्य राकेट-

भविष्य में इसरो द्वारा पुनः प्रयोज्य राकेटों का निर्माण किया जायेगा, जिससे लागत, ऊर्जा तथा अंतरिक्ष मलबे में कमी आएगी |इन राकेटों का अधिकांश भाग वायुमंडल में पुनः प्रवेश कर हवाई जहाज की तरह सतह पर उतरेगा तथा पुनः प्रयोग में आएगा |इसरों ने वर्ष 2016 में RLV-TD की सफल परीक्षण उड़ान भरी थी, जो आंशिक रूप से पुनः प्रयोज्य राकेट है |

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