भारत में इन दिनों चुनावी माहौल चल रहा है |भारत में लोकसभा चुनाव 19 अप्रैल से 1 जून के मध्य सात चरणों में होगा और 4 जून को रिजल्ट आयेगा |चुनावों के दौरान आपने कई बार ओपिनियन पोल तथा एग्जिट पोल के बारे में भी सुना होगा और इन पर अक्सर बहस होते हुये भी देखा होगा |इस लेख में एग्जिट पोल तथा ओपिनियन पोल से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में चर्चा करेंगे |जिसमे जानेगें कि एग्जिट पोल तथा ओपिनियन पोल क्या होता है, यह कैसे किया जाता है, एग्जिट पोल के लिये भारत में कानून तथा इसको लेकर क्या मत है |
Exit Poll क्या है-

एग्जिट पोल मतदान देकर बाहर निकल रहे लोगों से पूछे गये कुछ सवालों का एक सर्वेक्षण होता है जिसके माध्यम से पार्टियों को मिले वोटों का अनुमान लगाया जाता है |एग्जिट पोल का उद्देश्य आधिकारिक परिणाम घोषित होने से पहले ही चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करना है जिसका अधिकार भारतीय मीडिया को प्रेस की आज़ादी तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत मिली हुई है |भारत में कुछ एजेंसियां जैसे कि सी वोटर, टूडेज चाणक्य, टाइम्स नाउ, CNN तथा IBN के अतिरिक्त कई संस्थाएं एग्जिट पोल का सर्वेक्षण करती है |यह संस्थाएं वोटिंग के दौरान ही अलग-अलग उम्र, लिंग, जाति तथा समुदाय के लोगों से कुछ सवाल पूछती है जैसे कि आपने किस पार्टी को वोट दिया और क्यों |ये एजेंसियां लगभग हर तीसरे या चौथे मतदाता से सवाल करती है ताकि सभी वर्ग के मतदाताओं की पर्याप्त भागीदारी सर्वेक्षण में बनी रही |बाद में इन्ही मतदाताओं के जवाब के अनुसार एजेंसियां अपना एग्जिट पोल तैयार करती है जिसका सभी चरणों के चुनाव समाप्त हो जाने के बाद टीवी चैनल्स पर प्रसारण करते है |
भारत में एग्जिट पोल को लेकर कुछ विवाद भी हुये है |इन विवादों में एग्जिट पोल के आकंड़े के अनुसार हार रही पार्टियों ने इसे हमेशा से ही आधारहीन बताते हुये समाप्त करने की मांग की है |इससे पहले चुनाव आयोग भी एग्जिट पोल तथा ओपिनियन पोल पर प्रतिबन्ध लगाने की बात कह चुका है |
Opinion Poll क्या है-
ओपिनियन पोल तथा एग्जिट पोल दोनों अलग-अलग टर्म्स होते है |एग्जिट पोल का मतलब जहाँ चुनाव के बाद किया गया सर्वेक्षण है तो वहीँ ओपिनियन पोल की प्रक्रिया चुनाव के पहले ही करा ली जाती है |साथ ही ओपिनियन पोल के दौरान चुनाव से संबंधित सर्वेक्षण के लिये कई बातों का खास ध्यान भी रखा जाता है |जैसे कि लोगों से सवाल सटीक तरीके से पूछना होता है अगर सवाल सही तरीके से नहीं पूछा जायेगा तो सही जानकारी नहीं मिल पायेगी जिसके कारण अनुमान गलत हो सकता है |इसके अलावा ओपिनियन पोल से होने वाले सर्वे में हर व्यक्ति वास्तविक राय नहीं बताता है जिसके कारण सर्वे के दौरान सही व्याख्या नहीं हो पाती है |ओपिनियन पोल 100% सटीक नहीं होते है |
एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल को लेकर भारत में कानून-
चुनाव आयोग की मांगों को लेकर वर्ष 1999 में उच्चतम न्यायालय ने एक दिशा निर्देश जारी किया था |इस निर्देश में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि बिना किसी वैधानिक प्रतिबन्ध के चुनाव आयोग ओपिनियन पोल तथा एग्जिट पोल पर कोई रोक नहीं लगा सकता है जिसके बाद से यह दोनों ही पोल भारत में जारी है |हालाँकि 2004 में चुनाव आयोग ने एक बार फिर से एग्जिट पोल तथा ओपिनियन पोल के नियमों में कुछ बदलाव की बात रखी |चुनाव आयोग ने यह मांग तत्कालीन कानून मंत्री के सामने रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ द पीपल एक्ट में कुछ संशोधन कराने के लिहाज से रखी थी जिसमें ओपिनियन पोल तथा एग्जिट पोल को चुनाव के एक निर्धारित समय के दौरान बैन करने की मांग की गई थी |फरवरी 2010 में यह फैसला आया तो जरुर लेकिन यह पूरी तरह से चुनाव आयोग के पक्ष में नहीं था |कानून मंत्रालय ने रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ द पीपल एक्ट के सेक्शन 126A को परिभाषित करते हुये सिर्फ एग्जिट पोल को ही एक समय विशेष के लिये प्रतिबंधित करने की बात कही |इस प्रतिबन्ध के अनुसार किसी भी राज्य में किसी चरणों के मतदान पूरा हो जाने के आधे घंटे बाद ही एग्जिट पोल के नतीजों को प्रसारित करने का आदेश है |
एग्जिट पोल तथा ओपिनियन पोल को लेकर अलग-अलग देशों में अपने अपने कानून है |अमेरिका में ओपिनियन पोल को अभिव्यक्ति की आज़ादी का अभिन्न हिस्सा बताया गया है जहाँ इसे कभी भी प्रसारित किया जा सकता है जबकि एग्जिट पोल को लेकर वहां भी भारत जैसा ही कानून है |
एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल को लेकर मत-
एग्जिट पोल को लेकर जो विवाद होते है उसमें कहा जाता है कि एग्जिट पोल के कारण दूसरे मतदाताओं के व्यवहार तथा सोचने की दिशा प्रभावित होती है जिसके कारण वह खुद का तर्कसंगत विचार नहीं रख पाते है |एग्जिट पोल आने के बाद राजनैतिक पार्टियाँ पहले ही जश्न मनाने लगती है जबकि कई बार एग्जिट पोल के आकंड़े गलत साबित होते है जिससे चुनावी अव्यवस्था पैदा होने का खतरा रहता है |एग्जिट पोल के दौरान यह भी संभावना रहती है कि राजनीतिक पार्टियों के साथ भेदभाव किया जा सकता है जिसका चुनाव प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है |इसके अतिरिक्त किसी मतदाता के मतदान को सार्वजनिक करना भी स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है जिससे पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठते है |
एग्जिट पोल के पक्ष में कुछ विशेषज्ञों का तर्क यह है कि एग्जिट पोल को बैन करने से लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ माने जाने वाले प्रेस की स्वतंत्रता के साथ-साथ यह नागरिकों की भी अभिव्यक्ति पर पाबंदी लगाने जैसा है |इसके अतिरिक्त यह पोल इस बात का भी इशारा करते है कि मतदान के बहुमत का झुकाव किस राजनीतिक दल की ओर अधिक है जिससे उस पार्टी के चुनावी विश्वसनीयता का मूल्यांकन किया जा सके |
एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल के संबंध में उठाये जाने वाले जरुरी कदम-
एग्जिट पोल को तभी सही ठहराया जा सकता है जब तक कि उसके काम पर कोई सवाल न उठे |निर्वाचक आयोग को चाहिए कि एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल के लिये काम करने वाली एजेंसियों के लिये कुछ मानक तथा नियम तय किये जाये जिससे कि निष्पक्ष तथा सटीक आकंड़ों का पता लगाया जा सके |एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल के लिये जितनी अधिक आयु, वर्ग तथा जाति समुदाय के लोगों पर सर्वेक्षण किया जायेगा नतीजे उतने ही बेहतर आयेंगे |स्वतंत्र तथा निष्पक्ष निर्वाचन की भावना को बनाये रखने के लिये नागरिकों तथा मीडिया संगठनों को भी चाहिए कि वे जिम्मेदारी पूर्ण व्यवहार अपनाएं |साथ ही साथ एग्जिट पोल के परिणामों को लेकर भी लोगों में जागरूकता फैलाई जाये जोकि चुनाव प्रक्रिया के लिये एक बेहतर कदम साबित होगा |
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