Care Economy: क्या है देखभाल अर्थव्यवस्था

हम सभी ने अपने घर में मां की मेहनत को देखा ही है सुबह से लेकर रात तक मां हर छोटी बड़ी चीज का ध्यान रखती है |बच्चों की देखभाल से लेकर घर के सभी काम तथा परिवार के लिये एक आधारशिला का काम करती है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस अनदेखी मेहनत का मूल्य क्या है ?क्या हम इसे केवल एक पारिवारिक जिम्मेदारी समझकर नजरअंदाज कर सकते है ?केयर इकोनॉमी यानी देखभाल अर्थव्यवस्था वही स्थान है जहाँ मां की मेहनत रूप लेती है |यह अर्थव्यवस्था ना केवल परिवारों की स्थिरता को बनाये रखती है बल्कि हमारे समाज तथा देश की आर्थिक वृद्धि में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है |इस लेख में केयर इकोनॉमी यानी देखभाल अर्थव्यवस्था के बारें में चर्चा करेंगे |

इस लेख में-

1-Care Economy क्या है |

2-मौद्रिक अर्थव्यवस्था क्या है |

3-केयर इकोनॉमी की जीडीपी में योगदान |

4-रोजगार पर प्रभाव |

5-देखभाल अर्थव्यवस्था तथा मौद्रिक अर्थव्यवस्था के मध्य संतुलन |

Care Economy क्या है-

Care Economy: क्या है देखभाल अर्थव्यवस्था

केयर इकोनॉमी अर्थात देखभाल अर्थव्यवस्था में उन सेवाओं को शामिल किया जाता है जो लोगों की देखभाल से जुड़ी होती है जैसे बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों की देखभाल स्वास्थ्य सेवाएं तथा घरेलू कामकाज |यह कामकाज अक्सर बिना किसी भुगतान के होते है तथा इनमें ज्यादातर महिलायें जुड़ी होती है |एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 92% महिलायें बिना किसी भुगतान के घरेलू देखभाल कार्य करती है |

मौद्रिक अर्थव्यवस्था क्या है-

मौद्रिक अर्थव्यवस्था में वे सभी गतिविधियाँ आती है जिनसे देश को आय तथा रोजगार मिलता है |यह गतिविधियाँ मुख्यतः उद्योग, व्यापार तथा सर्विस सेक्टर से होती है |मौद्रिक अर्थव्यवस्था का सीधा असर देश की जीडीपी तथा रोजगार दर पर पड़ता है |

केयर इकोनॉमी की जीडीपी में योगदान-

एक स्टडी के अनुसार अगर घरेलू तथा देखभाल सेवाओं का आर्थिक मूल्य निर्धारित किया जाये तो यह भारत की जीडीपी का लगभग 3.1% हो सकता है जो दिखाता है कि देखभाल कार्यों का औपचारिक रूप आर्थिक योगदान बहुत बड़ा है जिसे हम अभी तक नजरअंदाज करते आ रहे है |

रोजगार पर प्रभाव-

केयर इकोनॉमी का औपचारिकरण देश में रोजगार के नए अवसर उत्पन्न कर सकता है |अगर देखभाल कार्यों के लिये नीतिगत बदलाव किये जाये तो महिलायें मौद्रिक अर्थव्यवस्था में अधिक सक्रीय रूप से भाग ले सकती है जिससे देश की उत्पादकता बढ़ सकती है |जैसे OECD की एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं की श्रम भागीदारी बढ़ने से जीडीपी में लगभग 27% तक की वृद्धि हो सकती है |

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देखभाल अर्थव्यवस्था तथा मौद्रिक अर्थव्यवस्था के मध्य संतुलन-

देखभाल अर्थव्यवस्था तथा मौद्रिक अर्थव्यवस्था के मध्य संतुलन लाने के लिये कुछ ख़ास उपाय हो सकते है जैसे-

1-देखभाल सेवाओं का औपचारिकरण:

सरकार द्वारा डे केयर सेंटर & बुजुर्ग देखभाल सेवाओं का विस्तार करना जिसमें महिलायें कामकाजी जीवन से जुड़ सके |

2-महिलाओं की श्रम भागीदारी बढ़ाना:

भारत में महिलाओं की श्रम भागीदारी सिर्फ 22% है जोकि वैश्विक औसत से बहुत कम है |अगर देखभाल कार्यों का भार कम किया जाएँ तो महिलाओं की मौद्रिक अर्थव्यवस्था में सक्रिय होने का मौका मिलेगा |

3-सार्वजनिक निवेश बढ़ाना:

देखभाल सेवाओं में सार्वजनिक निवेश बढ़ाकर अधिक रोजगार तथा सेवाओं का सृजन किया जा सकता है |इससे महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता तथा परिवार की आय में भी वृद्धि होगी |

भारत की आर्थिक वृद्धि के लिये देखभाल अर्थव्यवस्था तथा मौद्रिक अर्थव्यवस्था के मध्य संतुलित स्थापित करना बेहद आवश्यक है |

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