सैटेलाइट इंटरनेट:एलन मस्क की स्टारलिंक भारत में जल्दी ही लॉन्च होने वाली है, जिससे सैटेलाइट इंटरनेट देश के डिजिटल परिदृश्य को बदलने वाला है |यह तकनीक जो पहले से ही आपदा क्षेत्रों तथा सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण है, उन क्षेत्रों में उच्च गति इंटरनेट प्रदान करती है जहाँ जमीनी नेटवर्क लागू करना कठिन या असुरक्षित होता है |इस लेख में सैटेलाइट इंटरनेट क्या है, यह कैसे काम करता है, इसकी आवश्यकता क्यों है तथा सैटेलाइट इंटरनेट के उपयोग के विषय पर चर्चा करेंगे |
इस लेख में-
1-सैटेलाइट इंटरनेट क्या है |
2-सैटेलाइट इंटरनेट कैसे काम करता है |
3-सैटेलाइट इंटरनेट की आवश्यकता क्यों है |
4-सैटेलाइट इंटरनेट के उपयोग |
5-भारत में इंटरनेट सैटेलाइट |
सैटेलाइट इंटरनेट क्या है-

सैटेलाइट इंटरनेट एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जो अंतरिक्ष में उपस्थित उपग्रहों के माध्यम से इंटरनेट कनेक्शन प्रदान करती है |जिन क्षेत्रों में पारम्परिक जमीनी विकल्प जैसे केबल या DSL उपलब्ध नहीं है वहां इंटरनेट पहुँच प्रदान करने का एक तरीका है |
सैटेलाइट इंटरनेट कैसे काम करता है-
सैटेलाइट इंटरनेट दो मुख्य हिस्सों के माध्यम से कार्य करता है-1-अंतरिक्ष खंड तथा 2-जमीनी खंड |अंतरिक्ष खंड में पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले सैटेलाइट शामिल है, जबकि जमीनी खंड में पृथ्वी पर सभी उपकरण शामिल है जो इन सैटेलाइट से संचार करते है |सैटेलाइट सिस्टम का सबसे महंगा हिस्सा है, जो डेटा ट्रांसमिशन के लिए संचार पेलोड ले जाते है तथा इनकी सेवा अवधि 5 से 20 वर्ष होती है |सैटेलाइट की तैनाती के लिए सावधानीपूर्वक योजना की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से कक्षीय ऊंचाई के संदर्भ में, जो उनकी कवरेज तथा क्षमताओं को प्रभावित करती है |
सैटेलाइट मुख्य रूप से तीन कक्षाओं में रखे जाते है,जियोस्टेशनरी अर्थ ऑर्बिट (GEO), मीडियम अर्थ ऑर्बिट (MEO) तथा लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) जो कवरेज तथा विलंबता के लिए अलग-अलग लाभ प्रदान करते है |
सैटेलाइट इंटरनेट की आवश्यकता क्यों है-
1-जमीनी इंटरनेट जो केबल तथा टावर पर आधारित होते है, आमतौर पर शहरी क्षेत्रों में उपयोग किये जाते है, लेकिन कम आबादी वाले क्षेत्रों, प्राकृतिक आपदाओं तथा गतिशील कनेक्टिविटी में सीमित होते है |
2-सैटेलाइट इंटरनेट एक वैश्विक तथा लचीला समाधान प्रदान करता है तथा इसे दूरदराज के क्षेत्रों या हवाई जहाज जैसी चलती प्लेटफॉर्म पर तेजी से तैनात किया जा सकता है |
3-स्टारलिंक जैसी सैटेलाइट मेगा-कांस्टेलेशन कनेक्टिविटी में क्रांति ला रही है, जिनके उपयोग में सैन्य, आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवा तथा अन्य क्षेत्र शामिल है |
4-यह टेक्नोलॉजी परिवर्तनकारी है परंतु इसका ड्यूल यूज़ स्वरूप जटिल सुरक्षा चिंताएं उत्पन्न करता है, जैसे कि यूक्रेन संघर्ष में देखा गया |
5-इसकी सीमाहीन प्रकृति नए चुनौतियाँ लाती है, क्योंकि सैटेलाइट इंटरनेट का अवैध उपयोग बढ़ रहा है |
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सैटेलाइट इंटरनेट के उपयोग-
1-नागरिक उपयोग-ग्रामीण ब्रॉडबैंड, समुद्री तथा विमानन इंटरनेट, आपदा प्रतिक्रिया, स्मार्ट कृषि तथा टेलीमेडिसिन में |
2-सैन्य उपयोग-सुरक्षित युद्धभूमि संचार, निगरानी, वास्तविक समय डेटा ट्रांसमिशन में |
3-पर्यावरण उपयोग-जलवायु निगरानी, वन्यजीव ट्रैकिंग, समुद्र विज्ञान डेटा संग्रह में |
भारत में इंटरनेट सैटेलाइट-
भारत में Airtel, Jio तथा BSNL जैसी प्रदाताओं द्वारा सैटेलाइट इंटरनेट प्रदान किया जाता है |साथ ही साथ स्टारलिंक जैसे कुछ अंतर्राष्ट्रीय प्रदाता भी भारत में प्रवेश करने की योजना बना रहे है |पहले भी एलन मस्क ने स्टारलिंक आधारित सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस रोलआउट करने की कोशिश की थी परंतु सरकार ने इसकी मंजूरी नहीं दी थी |
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